गैरसैणः सही अर्थों में त्रिवेंद्र ही हैं असली ‘माटी के लाल’

पर्वतीय राज्य का एक ऐसा क्षेत्र जिसे लेकर बीते दशकों में बातें तो खूब होती रही लेकिन कभी किसी ने इस गैर गैरसैंण को अपनाने की कोशिश नहीं की। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत सत्ता में आए तो उन्होंने गैरसैंण को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की। इसी का नतीजा रहा कि उन्होंने मार्च माह में गैरसैंण में हुए विधानसभा सत्र में सवा करोड़ लोगों की जनभावनाओं का सम्मान करते हुए गैरसैंण को सूबे की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया। इस ऐतिहासिक मौके पर मुख्यमंत्री बेहद भावुक भी नजर आए। रुंधे गले से जब उनके द्वारा गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा की गई तो राज्य का हर एक वासी खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा था। बहरहाल, गैरसैण को लेकर मुख्यमंत्री की प्रतिबद्धता केवल यहीं तक नहीं थी।

गैरसैंण पर एक कदम आगे बढ़ाते हुए उन्होंने यहां पर अपने नाम से भूमि खरीदी और आने वाले दिनों में यहां अपने भवन निर्माण की भी इच्छा जताई है। गैरसैंण का विकास भी उन्होंने मास्टर प्लान के अनूरूप कराने का एलान किया है। इसी वर्ष 15 अगस्त को वह ऐतिहासिक क्षण भी आया जब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह ने गैरसैंण में पहली बार तिरंगा फहराया और परेड की सलामी ली। साथ ही उन्होंने गैरसैंण के हित में कई जन-कल्याणकारी घोषणाएं भी की।

अब 9 नवंबर को राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर एक बार फिर सरकार गैरसैंण में होगी। ऐसे में यह कहना कि गैर माने जाने वाले गैरसैंण को अगर सही मायनों में किसी ने गले लगाया तो वे त्रिवेंद्र ही हैं। नहीं तो इससे पहले सरकारों ने गैरसैंण को हमेशा सियासी कार्ड के तौर पर ही इस्तेमाल किया। दीगर है कि गैरसैंण के नाम पर तमाम नेताओं ने गाल तो खूब बजाए लेकिन करके कुछ नहीं दिखाया। आज गैरसैंण जिस मुकाम तक पहुँचा है उसमें मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का बड़ा योगदान है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *