याचिकाओं में अनावश्यक कागजात लगाने की जरूरत नहीं है, ऐसा करने से पेड़ों को कटने से बचाया जा सकता है : उत्तराखंड हाईकोर्ट

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने पेड़ बचाने को लेकर अहम् फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा कि अदालत में दायर की जाने वाली याचिकाओं में अनावश्यक कागजात लगाने की जरूरत नहीं है, ऐसा करने से पेड़ों को कटने से बचाया जा सकता है।

वन विभाग के एक रिटायर्ड कर्मचारी की पेंशन एवं अन्य लाभ देने संबंधी याचिका में 250 से अधिक पन्नों की याचिका को देख हाईकोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि याचिका में गजट नोटिफिकेशन, शासकीय गजट, ऐक्ट, अदालत के आदेश की प्रति की फोटो प्रति संलग्न नहीं की जाए।

शनिवार को सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की एकलपीठ ने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 से मान्य साक्ष्य यदि इंटरनेट पर उपलब्ध हैं, तो उन्हें याचिका में संलग्न न किया जाए। इससे एक तरफ वादकारियों पर अनावश्यक आर्थिक बोझ पड़ता है, तो वहीं कागज के प्रयोग से पर्यावरण को नुकसान होता है।

‘जितना अधिक कागज प्रयोग होगा, उतने ही पेड़ कटेंगे’
हाईकोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 48ए का जिक्र करते हुए कहा कि जल, जंगल, जमीन व वन्यजीव संरक्षण सरकार की जिम्मेदारी है। अनुच्छेद 51ए (जी) के अनुसार, प्राकृतिक पर्यावरण बचाना नागरिकों का कर्तव्य है। कोर्ट ने कहा कि कागज वन उत्पाद है और जितना अधिक कागज प्रयोग होगा, उतने ही पेड़ कटेंगे।

पेड़ काटने से वन और नदियां खतरे में हैं। जो आने वाली पीढ़ी के लिए खतरे की घंटी है। कोर्ट ने रजिस्ट्री कार्यालय को निर्देश दिए हैं कि इस आदेश की प्रति बार काउंसिल और बार एसोसिएशन को भेजते हुए अधिवक्ताओं से इसका पालन कराया जाए। साथ ही मुख्य स्थायी अधिवक्ता कार्यालय से याचिकाकर्ता से दो ही प्रतियों में याचिका प्राप्त करने को कहा है।

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