यूपी, पंजाब और उत्‍तराखंड के चुनाव की हरियाणा में सियासी गर्माहट, जानें क्‍यों ढूंढ रहे रोटी-बेटी के रिश्‍ते।

पंजाबी चेहरा मुख्यमंत्री मनोहर लाल हैं तो जाट चेहरे के रूप में ओमप्रकाश धनखड़ कैप्टन अभिमन्यु और सुभाष बराला आगे हैं। रोटी-बेटी के इन रिश्तों की वजह से ही बहुत से चुनाव ऐसे हैं जिनमें हारी बाजी जीतने की तैयारी है।
देश में जब भी कहीं चुनाव होते हैं, तभी राजनीतिक दलों के लोग आपस में रोटी-बेटी के रिश्ते तलाशना आरंभ कर देते हैं। रोटी-बेटी के रिश्ते को सबसे करीब का और आत्मीय रिश्ता माना जाता है। इसे निभाने के लिए किंतु-परंतु नहीं सोचा जाता। कोई रोटी के रिश्ते की वजह से तो कोई बेटी के रिश्ते के कारण एक-दूसरे की मदद करता है। चुनाव के वक्त यह रिश्ता खूब काम आता है या यूं कहिए कि भुनाया जाता है। रोटी का रिश्ता, मतलब एक प्रदेश या जिले के लोगों का दूसरे प्रदेश या जिले के लोगों के साथ वह संबंध, जो उन्हें उनके कारोबार से जोड़ता है, उनकी जरूरतों को पूरा करता है। बेटी का रिश्ता, मतलब ऐसे पारिवारिक संबंध, जिन्हें निभाने के लिए किसी भी हद तक जाया जा सकता है। इनको निभाने में न तो नफा देखा जाता है, न ही नुकसान की परवाह की जाती है।
पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, उत्तराखंड और हिमाचल के लोगों के साथ हरियाणा के लोगों के कुछ इसी तरह के रिश्ते हैं। लोक व्यवहार, संस्कृति, खानपान, वेशभूषा और कारोबार के लिहाज से इन राज्यों के लोग आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। नौकरी, रोजगार और व्यापार के लिए आते-जाते हैं। शादी-ब्याह करते हैं। नजदीक और दूर की रिश्तेदारियां बनी हुई हैं। सबके दुख-सुख में शामिल होते हैं। चुनाव आते ही इन रिश्तों और आपसी संबंधों में गरमाहट आ जाती है। फिलहाल जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, उनमें पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड ऐसे राज्य हैं, जहां हरियाणा के लोग रोटी-बेटी के रिश्ते की वजह से अहम भूमिका निभाने जा रहे हैं।
सबसे पहले पंजाब की बात करते हैं। वहां 20 फरवरी को चुनाव है। अंबाला से लेकर सिरसा तक, पूरा इलाका पंजाब की सीमा से सटा हुआ है। पंजाब में जब चुनाव होता है तो वहां हरियाणा के लोग असर डालते हैं और जब हरियाणा में चुनाव होता है तो पंजाब के लोग यहां असर डालते हैं। कपूरथला, पटियाला, संगरूर, मलेरकोटला, मानसा और फतेहगढ़ साहिब जिले ऐसे हैं, जहां हरियाणा के लोगों की  आवाजाही लगातार रहती है। चंडीगढ़ के आवाजाही लगातार रहती है। चंडीगढ़ के नजदीक मोहाली जिले में भी हरियाणा का दखल रहता है। पंजाब के इन जिलों में हरियाणा के नेताओं की ड्यूटी लगाई गई है। पंजाब में ऐसे नेताओं को चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी सौंपी गई है, जो जातीय समीकरणों को साधते हुए रोटी-बेटी के रिश्ते की अहमियत को समझते हैं और इन रिश्तों को वोट में तब्दील करने की ताकत रखते हैं।
इसी तरह उत्तर प्रदेश की स्थिति है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहले चरण में 10 फरवरी को मतदान है। यहां के सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली, बिजनौर, मेरठ, बागपत और हापुड़ ऐसे जिले हैं, जहां हरियाणा के लोग उम्मीदवारों की हार-जीत में अहम भूमिका निभाते रहे हैं। हरियाणा की जीटी रोड बेल्ट के साथ लगते उत्तर प्रदेश के कई जिलों में प्रदेश के लोगों की निरंतर आवाजाही लगी रहती है। यमुनानगर से सहारनपुर, करनाल से मुजफ्फरनगर और सोनीपत से मेरठ-बागपत-शामली में प्रवेश किया जाता है। लाखों लोग उत्तर प्रदेश में यहां से रोजगार के लिए जाते हैं और लाखों लोग हरियाणा में आते हैं। इसी तरह आपस में इनकी रिश्तेदारियां हैं, जिनकी वजह से वोट पर असर पड़ना स्वाभाविक है। उत्तराखंड के हरिद्वार, रुड़की और देहरादून जिलों में हरियाणा की काफी रिश्तेदारियां हैं। वहां भी लोग काम करने आते-जाते हैं।
इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चुनाव भी लड़ चुका है। ओमप्रकाश चौटाला ने यहां से अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा था। इसी तरह पंजाब में प्रकाश सिंह बादल और ओमप्रकाश चौटाला के रिश्ते किसी से छिपे नहीं हैं। चौधरी अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी और दुष्यंत चौटाला के बीच मित्रता जगजाहिर है। तीन दशक बाद चौधरी चरण सिंह और चौधरी देवीलाल के परिवार के बीच दूरियां खत्म हुई हैं, लेकिन इस बार मोर्चा थोड़ा अलग है। भाजपा के सहयोगी दल के रूप में जननायक जनता पार्टी के नेता दुष्यंत चौटाला पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए प्रचार करेंगे। पंजाब में बादल के साथ अभय सिंह चौटाला और उनके पिता ओमप्रकाश चौटाला खड़े नजर आएंगे।
कांग्रेस ने भूपेंद्र हुड्डा और दीपेंद्र हुड्डा को उत्तर प्रदेश के चुनाव में झोंका है, जबकि पंजाब में रणदीप सिंह सुरजेवाला को उतारा गया है। भाजपा ने जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए अपने पार्टी के पंजाबी, जाट, वैश्य और गुर्जर नेताओं की ड्यूटी लगाई है। पंजाबी चेहरा मुख्यमंत्री मनोहर लाल हैं तो जाट चेहरे के रूप में ओमप्रकाश धनखड़, कैप्टन अभिमन्यु और सुभाष बराला आगे हैं। गुर्जर चेहरे के रूप में केंद्रीय राज्य मंत्री कृष्णपाल गुर्जर हैं। रोटी-बेटी के इन रिश्तों की वजह से ही बहुत से चुनाव ऐसे हैं, जिनमें हारी बाजी जीतने की तैयारी है तो साथ ही जीती हुई बाजी को हराने का चक्रव्यूह बुना जा रहा है।

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