जोशीमठ: …तो क्या पानी में घुल रहे हैं ‘पहाड़’, विशेषज्ञों की ताजा रिपोर्ट में चौंकाने वाले तथ्य
जोशीमठ में भूधंसाव की खतरनाक होती जा रही स्थिति बताती है कि यहां की जमीन मौजूदा भार को वहन करने की स्थिति में नहीं है। इसके वैज्ञानिक कारण भी एक बार फिर पुष्ट किए गए हैं।
राज्य सरकार को सौंपी गई विशेषज्ञों की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि जोशीमठ की जमीन भूस्खलन के मलबे से बनी है।
हिमालय की उत्पत्ति के समय अस्तिस्त्व में ऐतिहासिक फाल्ट:
रिपोर्ट में चौंकाने वाली बात यह भी कही गई है कि न सिर्फ यहां की जमीन कमजोर है, बल्कि इसके नीचे से हिमालय की उत्पत्ति के समय अस्तिस्त्व में आया ऐतिहासिक फाल्ट मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी) भी गुजर रहा है। जिसके चलते यहां भूगर्भीय हलचल होती रहती है और पहले से कमजोर सतह को इससे अधिक नुकसान होता है।
विज्ञानियों ने संयुक्त रूप से तैयार की यह रिपोर्ट:
”जियोलाजिकल एंड जियोटेक्निकल सर्वे आफ लैंड सब्सिडेंस एरियाज आफ जोशीमठ टाउन एंड सराउंडिंग रीजंस” नामक रिपोर्ट में जोशीमठ की जमीन की पूरी क्षमता का विश्लेषण किया गया है।
यह रिपोर्ट उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण समेत सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च आफ इंडिया, आइआइटी रुड़की, जीएसआइ व वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के विज्ञानियों ने संयुक्त रूप से तैयार की है।
हाल में सरकार को सौंपी गई इस रिपोर्ट में जोशीमठ की जमीन के पत्थरों की प्रकृति भी बताई गई है।
इसमें कहा गया है कि ऐतिहासिक फाल्ट लाइन के दोनों तरफ के क्षेत्र हेलंग फार्मेशन और गढ़वाल ग्रुप्स में पत्थरों की प्रकृति समान है। ये पत्थर क्वार्टजाइट और मार्बल हैं, जिनकी मजबूती बेहद कम होती है। इन पत्थरों में पानी के साथ घुलने की प्रवृत्ति भी देखने को मिलती है।
जोशीमठ की जमीन का भीतरी आकलन किया जाए तो ऐतिहासिक फाल्ट लाइन एमसीटी के ऊपर मार्बल पत्थरों के साथ लूज (ढीला) मलबे की मोटी परत है और फिर इसके ऊपर जोशीमठ शहर बसा है।
रिपोर्ट में मलबे की इस परत को भूस्खलन जनित बताया गया है। जिससे स्पष्ट होता है कि समय के साथ जो निर्माण कमजोर जमीन पर किए गए, वह अब ओवरबर्डन (क्षमता से अधिक बोझ) की स्थिति में आ गई है। यही कारण है कि यहां की जमीन धंस रही है और भवनों पर दरारें गहरी होती जा रही हैं।
1976 में मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट का भी हवाला:
विशेषज्ञों की हालिया रिपोर्ट में वर्ष 1976 की मिश्रा कमेटी का जिक्र भी किया गया है। उस रिपोर्ट के हवाले से यह कहा गया है कि पूर्व में भी जोशीमठ के समय के साथ धरे-धीरे धंसने की आशंका व्यक्त की गई थी।
साफ है कि जिस हालिया रिपोर्ट के बाद सरकार चौकन्नी दिख रही है, उसी तरह की बातों का जिक्र पूर्व में कई दशक पहले किया जा चुका था।
नालों का प्रवाह अवरुद्ध होने से बढ़ी समस्या:
विशेषज्ञों की रिपोर्ट के मुताबिक जोशीमठ क्षेत्र में तमाम नालों का प्राकृतिक प्रवाह अवरुद्ध हो गया है। नाला क्षेत्र में बेतरतीब निर्माण किए गए हैं। इस कारण पानी सामान्य प्रवाह से निचले क्षेत्रों में जाने की जगह तेजी से कमजोर जमीन में समा रहा है। इसके चलते भी भूधंसाव तेज हो रहा है।
विशेषज्ञों की हालिया रिपोर्ट पर तब द्रुत गति से कार्रवाई की जा रही है, जब हालात विकट हो चुके हैं। यदि 47 साल पहले ही मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट पर गंभीरता से अमल किया जाता तो जोशीमठ पर कंक्रीट के भार को कम किया जा सकता था। साथ ही जल निकासी व भूकटाव को लेकर ठोस कदम उठाए जा सकते थे।
पद्मभूषण चंडी प्रसाद भट्ट (प्रसिद्ध पर्यावरणविद):
जोशीमठ की सतह कमजोर है। इसकी पुष्टि विभिन्न वैज्ञानिक अध्ययन में की जा चुकी है। ऐसे में स्पष्ट है कि इस सतह पर समय के साथ किए गए बेतरतीब निर्माण से हालात विकट हुए हैं। जोशीमठ क्षेत्र में जमीन की वहनीय क्षमता के मुताबिक ही निर्माण कराए जाने चाहिए। साथ ही ड्रेनेज सिस्टम को बेहतर बनकर और नदी से होने वाले कटाव का उपचार कर हालात पर काबू पाया जा सकता है।
डा कालाचांद साईं, निदेशक, वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान:
जोशीमठ तीव्र ढाल वाले क्षेत्र में बसा है। यहां की जमीन कमजोर है और इस पर भूकंप के साथ ही भूस्खलन, बाढ़ और अतिवृष्टि का भी निरंतर खतरा मंडराता रहता है। लिहाजा, इस क्षेत्र में भारी निर्माण प्रतिबंधित किए जाने चाहिए। क्योंकि, पर्यटन की गतिविधियां बढ़ने के साथ इस छोटे से शहर में कमर्शियल व आवासीय निर्माण की बाढ़ आ गई थी।
– डा राजेंद्र डोभाल, पूर्व महानिदेशक (उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद) व वाइस चेयरमैन, इंटीग्रेटेड माउंटेन इनिशिएटिव इंडिया