गर्म होती दुनिया से प्रभावित हो रहा करोड़ों का पान उद्योग

अनियमित बारिश और तापमान में उतार-चढ़ाव, लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय पान के लिए खतरा बन गया है क्योंकि जलवायु की दृष्टि से यह पौधा बेहद संवेदनशील है।

तेज प्रकाश भारद्वाज: जलवायु परिवर्तन का खराब असर पान के पत्तों पर दिखाई दे रहा है। भारत में पान की खेती करने वाले किसानों का कहना है कि पान के पत्तों की गुणवत्ता खराब हो रही है। दक्षिण एशिया में लाखों लोग पान चबाते हैं। अब यह पौधा अनियमित वर्षा और असामान्य तापमान में उतार-चढ़ाव के बीच संघर्ष कर रहा है।

पान का पत्ता दिल के आकार का होता है। यह दक्षिण एशिया में काफी पॉपुलर है। यह पान के पौधे की बेल से निकलता है। भारतीय राज्यों असम, आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, ओडिशा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में अनुमानित 50,000 हेक्टेयर में छोटे किसानों द्वारा उगाया जाने वाला यह एक सदाबहार पौधा है। इन क्षेत्रों की मिट्टी में पाई जाने वाली नमी पान के पत्ते की खेती के लिए अनुकूल है। यह एक ऐसा उद्योग है जिसने हाल के दशकों में खुद को मजबूती से स्थापित किया है।  इंटरनेशनल रिसर्च जर्नल ऑफ एजुकेशन एंड टेक्नोलॉजी द्वारा प्रकाशित 2022 के पेपर में, यह अनुमान लगाया गया था कि भारत में पान के पत्ते से वार्षिक कारोबार लगभग 10 अरब रुपये का था।  वित्त वर्ष 2021-22 में, भारत ने 26 करोड़ रुपए मूल्य के पान के पत्तों का निर्यात किया। पान के पत्ते की खेती और बिक्री, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भारत में लगभग 2 करोड़ लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करती है।

 पान चबाने की आदत

पान के पौधे को पानी और काफी श्रम की आवश्यकता होती है। इसका विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है। इसके लिए विशिष्ट जलवायु परिस्थितियों की भी आवश्यकता होती है। पान के पौधों के स्वस्थ विकास के लिए हल्के तापमान की जरूरत होती है। यह सर्दियों में लगभग 10 डिग्री और गर्मियों में लगभग 40 डिग्री होना चाहिए। अगर इन परिस्थितियों में उतार-चढ़ाव आता है तो इसका गंभीर असर पान के पत्तों की उपज और गुणवत्ता पर पड़ता है। पान की खेती बरेजा में शुरू की जाती है। यह स्थानीय किसानों द्वारा पुआल और घास से तैयार की जाने वाली संरचना है। बरेजा, पान की बेल को सुरक्षा प्रदान करते हुए सूर्यातप, तापमान और आर्द्रता को नियंत्रित करते हैं।

पान बाज़ार को कई खतरों का सामना करना पड़ रहा है

पान चबाने के प्रति बढ़ती अरुचि और बढ़ती श्रम लागत के कारण भारत में पान की खेती में उल्लेखनीय गिरावट आई है। हालांकि, लखनऊ में राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान के पूर्व वैज्ञानिक रामसेवक चौरसिया पान की खेती में गिरावट का कारण मौसम की चरम घटनाओं को भी मानते हैं। चौरसिया ने द् थर्ड पोल से कहा, “2000 के दशक की शुरुआत तक, लगभग 550 से 600 किसान [महोबा में] 200 एकड़ से अधिक भूमि पर पान की खेती करते थे। यह खेती का क्षेत्र अब घटकर 20 एकड़ रह गया है। अब केवल 150 किसान ही पान की खेती करते हैं।” उनका कहना है कि किसान अपनी आय बनाए रखने के लिए धीरे-धीरे अन्य फसलों की ओर रुख कर रहे हैं। दुनिया तेजी से गर्म होती जा रही है। दक्षिण एशिया में वर्षा बढ़ रही है। मानसून मजबूत होता जा रहा है और पूर्वानुमान ज्यादा कठिन होता जा रहा है। मौसम की ऐसी विषम घटनाओं का असर पान की खेती पर भी पड़ रहा है।  122 साल पहले रिकॉर्ड शुरू होने के बाद से मार्च 2022 भारत में सबसे गर्म मार्च है। इस वर्ष, कई भारतीय शहरों में तापमान 44 डिग्री सेल्सियस से अधिक दर्ज किया गया। यह हीटवेव घोषित करने के लिए 40 डिग्री सेल्सियस की सीमा से काफी ऊपर है।

 सागर द्वीप अध्ययन

पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन में विश्व भारती विश्वविद्यालय के विद्वान समीरन दास ने पान की खेती पर बदलती जलवायु के प्रभाव का अध्ययन किया है। पान के पौधे पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के संबंध में अनुभवजन्य, क्षेत्रीय डाटा की कमी को दूर करने के लिए, दास ने सागर द्वीप समूह के 16 गांवों में 80 पान किसानों की धारणाओं यानी परसेप्शन का सर्वेक्षण करने का विकल्प चुना। तटीय दक्षिण 24 परगना जिले में स्थित, ये द्वीप भारत में सबसे अधिक पान का उत्पादन करने वाले स्थानों में से एक के रूप में प्रसिद्ध है।  अप्रैल 2023 में प्रकाशित, दास के शोध से हाल के वर्षों में “काले धब्बे” और “क्लोरोसिस” (क्लोरोफिल की हानि) की एक उच्च घटना का पता चलता है। इससे निष्कर्ष निकलता है कि इस गिरावट के पीछे अचानक क्षेत्रीय तापमान में उतार-चढ़ाव है: “जलवायु परिवर्तन अलग-अलग तापमान वृद्धि के माध्यम से प्रकट नहीं होता है, बल्कि यह उतार-चढ़ाव के रूप में होता है, जो पान के पत्तों की उत्पादकता और गुणवत्ता के लिए बहुत अधिक हानिकारक है।”

के हिमा बिंदू, दास से सहमत हैं। भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान के एक प्रमुख वैज्ञानिक बिंदु का कहना है कि पान के पत्ते की प्रभावी खेती के लिए तापमान और आर्द्रता को नियंत्रित करना दो महत्वपूर्ण कारक हैं। वह कहती हैं, “यदि तापमान बहुत अधिक है और पानी एक सीमित कारक है, तो इसका निश्चित रूप से खेती पर असर पड़ता है।”

चक्रवातों की वजह से विस्थापन

तापमान में उतार-चढ़ाव के अलावा, दास कहते हैं कि बार-बार आने वाले तूफानों ने दोनों को तबाह कर दिया है। यह किसानों को पान की खेती छोड़ने के लिए मजबूर करता है: “आइला चक्रवात [2009] और हालिया चक्रवात यास [2021] के दौरान, बहुत से हाशिए पर रहने वाले मोनोकल्चर किसानों ने अपनी पान की फसल खो दी। इसलिए, वे मजदूरी करने लगे।”  दक्षिण 24 परगना भारत का सबसे अधिक चक्रवात प्रभावित जिला है। स्प्रिंगर लिंक के एक अध्ययन के अनुसार, देश के तटीय राज्यों में आने वाले उच्च तीव्रता वाले चक्रवातों की संख्या बढ़ रही है। उनमें से, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक चक्रवातों के अनुभव हुए: 2006 और 2020 के बीच, 14 चक्रवातों ने पश्चिम बंगाल को पार किया, जिससे दक्षिण 24 परगना और पूर्व व पश्चिम मिदनापुर जैसे पान उगाने वाले जिले गंभीर रूप से प्रभावित हुए।

 किसान गुणवत्ता संबंधी समस्याओं की बात करते हैं

उत्तर प्रदेश के महोबा शहर के 54 वर्षीय किसान राजकुमार चौरसिया अपने पान की लताओं के बीच की संकरी गलियों में चलते हैं और नई पत्तियों का ध्यानपूर्वक निरीक्षण करते हैं। वह कहते हैं, “अगर अप्रैल और मई की शुरुआत में बारिश नहीं हुई होती, तो पान की बेलें अधिक मोटी (स्वस्थ) होती, पत्ते बड़े होते।”  मौसम का असामान्य मिजाज पान की फसल को प्रभावित कर सकता है। महोबा में राजकुमार चौरसिया के खेत में अप्रैल और मई में हुई अतिरिक्त बारिश से पान के पत्तों का आकार और मोटाई कम हो गई। (फोटो: तेज प्रकाश भारद्वाज) चौरसिया 30 वर्षों से अधिक समय से महोबा में पान की खेती कर रहे हैं, लेकिन अब वह इस क्षेत्र में बचे कुछ ही किसानों में से एक हैं। उन्हें महोबा के पान के सुनहरे दिन याद हैं। इनमें वह अनूठे सुगंध वाले लोकप्रिय देसी पान, देसावरी की बात भी करते हैं। अलग तरह के क्रिस्पी टेक्सचर और मीठे स्वाद के लिए 2021 में इसे जीआई टैग मिला। महोबा में किसान शहर के बाजार में भेजने के लिए पान के पत्तों को व्यवस्थित कर रहे हैं।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने अप्रैल और मई के दौरान उत्तर प्रदेश में अत्यधिक वर्षा की सूचना दी, जबकि जनवरी में क्षेत्रीय तापमान असामान्य रूप से कम दर्ज किया गया। चौरसिया बताते हैं, “पिछली सर्दियों [2023] में, तापमान 2 डिग्री सेल्सियस तक गिर गया था। पान के पत्ते केवल 6 डिग्री सेल्सियस तक ही सहन कर सकते हैं; इससे हमें भारी नुकसान हुआ।” वैज्ञानिक रामसेवक चौरसिया का कहना है कि अगले चार से पांच साल में देसावरी किस्म के विलुप्त होने का खतरा है।  समीरन दास का कहना है कि पान की फसल पर तापमान में उतार-चढ़ाव के प्रभाव को वर्तमान में अनुकूलन रणनीतियों, जैसे उर्वरकों के उपयोग, मिट्टी के उपचार और परिवेश के तापमान के बेहतर नियंत्रण के लिए सुरक्षात्मक संरचनाओं द्वारा कम किया जा रहा है। हालांकि, उनका कहना है कि दीर्घावधि में यह एक व्यवहार्य समाधान नहीं हो सकता है: “यदि ये जलवायु परिस्थितियां बनी रहती हैं, तो पान की खेती आने वाले वर्षों में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को और अधिक स्पष्ट रूप से अनुभव करेगी।”

साभारः दथर्डपोलडाटनेट

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *